Read the information of all the schemes operated in the year 2017-18 by the Directorate of Agriculture, Government of India and Department of Agriculture (Bihar Government)
भारत सरकार व कृषि विभाग (बिहार सरकार) के कृषि निदेशालय द्वारा वर्ष 2017-18 में संचालित सभी योजनाओं की जानकारी हिंदी में पढ़ें,Read the information of all the schemes operated in the year 2017-18 by the Directorate of Agriculture, Government of India and Department of Agriculture (Bihar Government)
1 : अनुदानित दर पर बीज वितरण-
इस योजनान्तर्गत भारत सरकार के नये दिशा-निर्देश के आलोक में नवीनतम प्रभेद के बीज की पहुँच ग्रामीण क्षेत्रों में करने हेतु धान एवं गेहूँ के 10 वर्षों से कम अवधि के प्रभेद के बीज पर अनुदान अनुमान्य किया गया है, जबकि दलहन एव तेलहन फसलों हेतु 15 वर्षों से कम अवधि के प्रभेद के बीज पर अनुदान अनुमान्य किया गया है।
2 : राजकीय बीज गुणन प्रक्षेत्रों में बीज उत्पादन-
राजकीय बीज गुणन प्रक्षेत्र पर खरीफ में धान, बाजरा, मड़ुआ, अरहर, जूट, मूँग, लोबिया, मूँगफली तथा सोयाबीन,रबी में गेहूँ, जई, चना, मसूर, मटर, राई/सरसों और तीसी एवं गरमा मौसम में मूँग, उरद और तिल के बीज उत्पादन हेतु राशि कर्णांकित की गई है। प्रक्षेत्रों के स्थानीय उपयुक्तता एवं परिस्थिति के अनुसार फसलवार आच्छादन लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
3 : मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम-
योजना का उद्देश्य राज्य के सभी राजस्व गाँवो में एक साथ उन्नत प्रभेदों के बीज उपलब्ध कराकर बीज उत्पादन हेतु किसानों को प्रोत्साहित करना है। आधार बीज का वितरण सभी जिला एवं प्रखंड मुख्यालयों में शिविर आयोजित कर किया जाता है। बीज वितरण के समय ही सभी चयनित किसानों को प्रखंड स्तर पर बीजोत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाता है।
4 : बीज ग्राम योजना-
इस योजना का कार्यान्वयन वर्ष 2007-08 से किया जा रहा है। योजनान्तर्गत किसानों को धान एवं गेहूँ फसल हेतु 50% अनुदान पर आधार/प्रमाणित बीज तथा दलहन एवं तेलहन फसल हेतु 60% अनुदान पर आधार/प्रमाणित बीज उपलब्ध कराया जाता है। किसानों को बीज उत्पादन हेतु तीन स्तरों पर (बोआई से पूर्व, फसल के मध्य अवस्था में एवं कटाई से पूर्व) प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रत्येक बीज ग्राम हेतु अधिकतम 100 किसानों का चयन किया जाता है। चयनित किसानों को एक एकड़ क्षेत्र के लिए चिन्हित फसलों के बीज उपलब्ध कराया जाता है।
5 : एकीकृत बीज ग्राम योजना-
एकीकृत बीज ग्राम की स्थापना हेतु गया, नालन्दा, बक्सर, रोहतास, कैमूर, भोजपुर, औरंगाबाद, कटिहार एवं पूर्णिया जिले के चिन्हित गाँव में किया जाना है, जिसमें किसानों को 60% अनुदान पर दलहन एवं तेलहन फसलों के आधार/प्रमाणित बीज तथा अन्य फसलों के बीज 50% अनुदान पर उपलब्ध कराया जाता है। स्थापित एकीकृत बीज ग्राम को पाँच वर्षो तक सहायता प्रदान की जाती है।
6 : धान की मिनीकीट योजना-
केन्द्र प्रायोजित योजनान्तर्गत मिनीकीट बीज चयनित कृषकों के बीच 80% अनुदान पर उपलब्ध कराया जाता है। इसके अन्तर्गत 5 से 10 वर्षों के विकसित प्रभेदों को राज्य के चयनित क्षेत्रों में वितरित कर उसके फलाफल को देखा जाता है कि यह प्रभेद किस क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। इसमें आधे एकड़ के लिए बाढ़ एवं सुखाड़ रोधी धान के प्रभेद क्रमशः स्वर्णा सब-1 तथा सहभागी/सम्पदा प्रभेद के 6 किलो प्रमाणित बीज पैकेट कृषकों को उपलब्ध कराया जाता है।
7 : बिहार राज्य बीज निगम का सुदृढ़ीकरण-
राज्य के विभिन्न स्थानों में भंडारण क्षमता बढ़ाने हेतु बिहार राज्य बीज निगम अंतर्गत बीज गोदाम के निर्माण तथा कुदरा एवं शेरघाटी में अतिरिक्त प्रसंस्करण की स्थापना के लिए भवन निर्माण राज्य योजना से किया जा रहा है।
8 : बिहार स्टेट सीड एण्ड आर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी को सहायक अनुदान -
एजेंसी मे कार्यरत मानव बल, बीज जाँच प्रयोगशाला, डी॰एन॰ए॰ फिंगरप्रिंटग लैब, ग्रोआउट टेस्ट फार्म, क्षेत्रीय कार्यालयों का सुदृढ़ीकरण के साथ प्रशिक्षण एवं सॉफ्टवेयर का विकास किया गया है। सारे प्रयास राज्य में बीज की आवश्यकता के अनुरूप बीज प्रमाणन की क्षमता बढ़ाए जाने की दिशा में अग्रसर है। इस राशि का उपयोग कर राज्य में 35,000 (पैंतीस हजार) हे॰ में बीज उत्पादन का निबंधन एवं 5,15,000 (पाँच लाख पंद्रह हजार) क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया जाना है।
9 : जैविक खेती प्रोत्साहन योजना-
वर्ष 2017-18 में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु जैविक कोरिडौर का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें प्रथम चरण में पटना से भागलपुर तक के गंगा के किनारे पड़ने वाले गाँव तथा दनियावाँ से बिहारशरीफ तक के राष्ट्रीय/राजकीय मार्ग के किनारे बसे गाँवों में जैविक कोरिडौर का निर्माण किया जायेगा।
पटना एवं नालंदा जिला में जैविक कोरिडोर का निर्माण परम्परागत कृषि विकास योजना से किया जायेगा।
पटना, नालंदा, लखीसराय, बेगुसराय, मुंगेर एवं भागलपुर जिलों के दियारा क्षेत्र में जैविक कोरिडौर का निर्माण दियारा विकास योजना से कराया जायेगा।
पटना, नालंदा, लखीसराय, बेगुसराय, मुंगेर एवं भागलपुर जिलों के दियारा क्षेत्र में जैविक कोरिडौर का निर्माण दियारा विकास योजना से कराया जायेगा।
जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत अंगीकरण एवं प्रमाणीकरण के कार्य हेतु पटना, नालंदा, वैशाली, समस्तीपुर, बेगुसराय, खगडि़या, मुंगेर, भागलपुर जिलों में गंगा के किनारे के गाँवों में कोरिडौर का निर्माण किया जायेगा।
जैविक खेती योजना से कोरिडौर में किसानों/उत्पादकों का समूह बनाकर राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के अनुसार जैविक खेती के लिए निर्धारित पैकेज पर अनुदान देकर अंगीकरण कराकर प्रमाणीकरण कराया जायेगा।
जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत जैविक खेती का अंगीकरण का कार्य जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा किया जायेगा तथा प्रमाणीकरण संबंधी अन्य कार्य बिहार स्टेट सीड एण्ड आॅरगेनिक सर्टिफिकेशन एजेन्सी द्वारा किया जायेगा।
जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत जैविक खेती का अंगीकरण का कार्य जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा किया जायेगा तथा प्रमाणीकरण संबंधी अन्य कार्य बिहार स्टेट सीड एण्ड आॅरगेनिक सर्टिफिकेशन एजेन्सी द्वारा किया जायेगा।
योजना के कार्यान्वयन के लिए सब्जी की खेती करने वाले किसान/उत्पादन समूह का चयन कर अनुदान पर जैविक उपादान का वितरण कराया जायेगा।
सभी किसानों को कलस्टर में जैविक खेती करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।
जैविक कोरिडौर में किसानों को अधिक-से-अधिक पक्का वर्मी कम्पोस्ट इकाई, गोबर गैस तथा अन्य उपादान का वितरण किया जायेगा।
जैविक खेती प्रोत्साहन योजनान्तर्गत प्रत्येक जिला में एक जैविक ग्राम की स्थापना की जायेगी जिसमें किसानों को अधिक-से-अधिक पक्का वर्मी कम्पोस्ट इकाई एवं गोबर गैस इकाई का लाभ दिया जायेगा।
वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन में वृद्धि के लिए किसानों को 75घन फीट क्षमता के स्थायी/अर्द्धस्थायी उत्पादन इकाई पर मूल्य का 50% अधिकतम 3,000 रू॰ प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रावधान है। एक किसान अधिक-से-अधिक 05 इकाई के लिए अनुदान का लाभ ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्यमी/सरकारी प्रतिष्ठानों को सहायता का प्रावधान है। वर्मी कम्पोस्ट वितरण में मूल्य का 50% अधिकतम 300 रू॰/क्विं॰ की दर से अधिकतम02 हेक्टेयर के लिए अनुदान का प्रावधान किया गया है। व्यवसायिक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई की स्थापना हेतु निजी उद्यमी को प्रतिवर्ष 1,000, 2,000 एवं3,000 मे॰ टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का 40% अधिकतम 6.40, 12.80 एवं 20.00 लाख रूपये क्रमशः अनुदान देने का प्रावधान किया गया है, जो पॉच किस्तों में प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता का कम-से-कम 50% उत्पादन करने के उपरांत देय होगा अर्थात् कुल अनुदान राशि का प्रथम वर्ष में 30%, द्वितीय वर्ष में 20प्रतिशत, तृतीय वर्ष में 20%, चतुर्थ वर्ष में 15% एवं पंचम वर्ष में 15% अनुदान राशि देने का प्रावधान किया गया है। सरकारी प्रतिष्ठानों को प्रतिवर्ष 1,000, 2,000 एवं 3,000मे॰ टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता के लिए लागत मूल्य का शत्-प्रतिशत अधिकतम 16.00 32.00 एवं 50.00 लाख रूपये क्रमशः अनुदान देने का प्रावधान है।
जैव उर्वरक पोषक तत्वों को जमीन में स्थिर करने तथा इसे पौधों को उपलब्ध कराने में उपयोगी है। इस कार्यक्रम अन्तर्गत जो किसान जैव उर्वरक खरीदना चाहते हैं, उनके लिए मूल्य का 50% अधिकतम 75 रूपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दर प्रस्तावित की गई है। व्यावसायिक जैव उर्वरक में सरकारी/गैर सरकारी संस्थाओं को अनुदान देने का प्रावधान किया गया है।
हरी खाद के रूप में ढैंचा तथा मूँग की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। गरमा/पूर्व खरीफ 2016 के लिए इस कार्यक्रम में ढैंचा बीज 90% तथा मूंग का बीज 80%अनुदान पर उपलब्ध कराने का कार्यक्रम स्वीकृत किया गया है।
गोबर/बायो गैस के प्रोत्साहन के लिए किसानों को 02घनमीटर क्षमता के लिए इसके लागत मूल्य का 50%अधिकतम 19,000 रू॰ प्रति इकाई की दर से अनुदान देने का प्रावधान है।
सूक्ष्म पोषक तत्व समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के लिए कमी वाले क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, बोरॉन आदि के व्यवहार से फसल उत्पादन बढ़ेगा। इस उद्देश्य से जिन क्षेत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, बोरॉन आदि की कमी हो रही है वहाँ किसानों को इनके व्यवहार के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए मूल्य का 50% अधिकतम 500रू॰ प्रति हेक्टेयर अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया जायेगा।
समेकित कीट प्रबंधन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीज का उपचार आवश्यक है। बीज के उपचार की तकनीक को अपनाने के लिए किसानों को बीजोपचार रसायन पर मूल्य का 50% अधिकतम 150 रूपये प्रति हेक्टेयर सहायता दी जाएगी। फसलों के लिए कुछ अत्यंत नुकसानदेह कीड़े जैसे चना का पिल्लू (पॉड बोरर), बैगन का पिल्लू (सूट एण्ड फ्रूट बोरर) आदि के नर कीट को फिरोमोनट्रेप लगाकर फँसाया जा सकता है तथा इसकी आबादी को बढ़ने से रोका जा सकता है। यह नयी तकनीक है। इसके प्रति रूझान बढ़ाने के लिए मूल्य का 90%अधिकतम 900 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान राशि स्वीकृत की गई है। रासायनिक कीटनाशी/फफुंदनाशी के व्यवहार से पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त करने के लिए जैविक विकल्प अपनाना आवश्यक हैं। इनके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए किसानों को मूल्य का 50% अधिकतम500 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान राशि की सहायता दी जाएगी।
10 : कृषि यांत्रिकरण -
69 विभिन्न प्रकार के कृषि यंत्रों पर अनुदान की व्यवस्था है, वर्तमान वित्तीय वर्ष में विभिन्न यंत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ट्रैक्टर, कम्बाईन हार्वेस्टर, पावर टीलर, पम्पसेट,जीरोटिलेज/सीड कम फर्टिलाईजर ड्रिल एवं एच॰डी॰पी॰ई॰ लेमिनेटेड वुभेन ले फ्लैट ट्यूब तथा रोटावेटर का राज्य स्तर से लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जबकि शेष यंत्रों को मांग आधारित किया गया है।
कृषि यांत्रिकरण योजना में आवेदन प्राप्ति से लेकर यंत्र वितरण तक की ऑन-लाइन व्यवस्था हेतु मैकेनाइजेशन साॅफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। किसान मेला के अतिरिक्त मेला के बाहर क्रय किये गये कृषि यंत्रों पर भी अनुदान देने का प्रावधान है।
कृषि यांत्रिकरण योजना में आवेदन प्राप्ति से लेकर यंत्र वितरण तक की ऑन-लाइन व्यवस्था हेतु मैकेनाइजेशन साॅफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। किसान मेला के अतिरिक्त मेला के बाहर क्रय किये गये कृषि यंत्रों पर भी अनुदान देने का प्रावधान है।
11 : ई-किसान भवन का निर्माण -
कृषि के समग्र विकास एवं कृषकों के हित में कृषि विभाग द्वारा राज्य के सभी 534 प्रखंडों में ई-किसान भवन का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य प्रखंड स्तर पर कृषि सम्बंधी उपादानों तथा अन्य सभी तकनीकी सेवाओं को एकल खिड़की से प्रदान करना है। कुल 534 प्रखंडों में से 362 प्रखंडों में ई-किसान भवन का कार्य पूर्ण हो चुका है। शेष 172 प्रखंडों में निर्माण का कार्य प्रगति में है।
12 : टाल विकास योजना-
टाल क्षेत्रों में कीट-व्याधियों के समेकित प्रबंधन एवं पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए फसल का उत्पादन बढ़ाने एवं फसल समस्या समाधान में कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु कृषक प्रक्षेत्र पाठशाला संचालित किये जा रहे हैं।
13 : दियारा विकास योजना-
दियारा क्षेत्रों के विकास हेतु राज्य के बक्सर, भोजपुर, पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण,पश्चिमी,चम्पारण, खगडि़या, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णियाँ, कटिहार, भागलपुर, मुंगेर, लखीसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, बेगूसराय, सारण, सिवान, गोपालगंज, शिवहर एवं सीतामढ़ी कुल- 25 जिलों में दियारा विकास योजना कार्यान्वित की जाती है। इस योजना अंतर्गत गोर्डस यथा (कद्दु, नेनुआ, करेला), मेलन तथा भिंडी के हाईब्रिड बीज का वितरण 50% अधिकतम 8,000 (आठ हजार) रू० प्रति हे०, मटर उन्नत/हाईब्रिड बीज वितरण 50%अधिकतम (तीन हजार) रू० प्रति हे० तथा किसानों को पी०भी०सी० पाईप बोरिंग हेतु लागत मूल्य का 50% (100फीट तक, 4 इंच व्यास की पाईप हेतु) अधिकतम मो॰-7,500 (सात हजार पाँच सौ) रूपये अनुदान अनुमान्य है।
14 : किसान सलाहकार योजना-
प्रत्येक पंचायत में पदस्थापित किसान सलाहकारों के मानदेय राज्य योजना से कर्णांकित की गई है।
15 धान की कम्यूनिटी नर्सरी विकास-
राज्य योजना अंतर्गत धान के सामुदायिक नर्सरी एवं बिचड़ा विकास हेतु किसानों के लिए अनुदान की व्यवस्था की गई है। एक एकड़ में नर्सरी उगाने वाले किसानों को 6,500 रू॰ की सहायता प्रदान की जाती है तथा बिचड़ा वितरण मद में किसानों द्वारा बिचड़ा क्रय करने के विरूद्ध एक एकड़ रोपनी हेतु एक हजार रू॰ अनुदान अनुमान्य है।
16 धातु कोठिला का अनुदानित दर वितरण कार्यक्रम-
राज्य योजना अंतर्गत अन्न भंडारण के लिए किसानों को अनुदानित दर पर धातु कोठिला वितरित किया जाता है।
17 : डीजल अनुदान वितरण-
वर्ष 2017-18 में अल्पवृष्टि के कारण सुखाड़ जैसी स्थिति को देखते हुए धान बिचड़ा, धान रोपनी करने तथा धान, मक्का एवं अन्य खरीफ फसलों को डीजल चालित पम्पसेट से पटवन करने के लिए सरकार द्वारा किसानों को डीजल अनुदान देने की व्यवस्था की गई है।
खरीफ फसलों की सिंचाई के लिए 30 रूपये प्रति लीटर की दर से 300 रूपये प्रति एकड़ प्रति सिंचाई डीजल अनुदान दिया जायेगा। यह अनुदान धान बिचड़ा के 2सिंचाई, धान के 3 सिंचाई, मक्का एवं अन्य खरीफ फसल के 3 सिंचाई के लिए प्रति एकड़ अधिकत्तम 900 रू० दिया जायेगा।
रबी फसलों यथा-गेहूँ फसल के तीन सिंचाई एवं अन्य रबी फसलों के लिए दो सिंचाई के लिए प्रति एकड़ 300रू॰ की दर से अधिकतम 900 रू॰ प्रति एकड़ अनुमान्य किया गया है।
18 जिरो टिलेज तकनीक से गेहूँ का प्रत्यक्षण-
धान फसल के कटाई उपरान्त गेहूँ की बोआई जिरो टिलेज तकनीक से करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य योजना अंतर्गत इस तकनीक से गेहूँ के प्रत्यक्षण हेतु 2,960 रू॰ प्रति एकड़ अनुदान की व्यवस्था की गई है। इससे गेहूँ की बोआई के समय में 20-25 दिनों की बचत होती है। साथ ही, किसानों को जुताई का पैसा भी बच जाता है।
केन्द्र प्रायोजित योजना
1 : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-
इस योजना का मुख्य उद्देश्य चावल, गेंहूँ, दलहन एवं कोर्स सीरीयल (मक्का) के उत्पादन में 4% वार्षिक वृद्धि लाकर खाद्यान्न के मामले में राज्य एवं देश को सुरक्षित करना है। इस मिशन के अन्तर्गत राज्य के उन्ही जिलों को अंगीकृत किया गया है जिनमें चावल, गेहूँ एवं दलहन की उत्पादकता राज्य की औसत उत्पादकता से कम है एवं उत्पादन बढ़ाने की असीम संभावना है।
चावल- 12वीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित जिलों को चयनित किया गया है- अररिया, पूर्वी चम्पारण, दरभंगा, गोपालगंज, कटिहार, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्णियां, सहरसा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, सिवान एवं सुपौल।
गेहूँ- 12वीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित जिलों को चयनित किया गया है- अररिया, औरंगाबाद, भोजपुर, गया, गोपालगंज, नालंदा, पटना, सीतामढ़ी, सिवान एवं सुपौल।
दलहन- दलहनी फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि लाने के लिए सभी जिलों को आच्छादित किया गया है।
कोर्स सीरीयल (मक्का)- 12वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में मोटे अनाज के उत्पादन हेतु कोर्स सीरीयल अन्तर्गत मक्का उत्पादन का कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है, जो राज्य के 11 जिलों यथा बेगूसराय, भागलपुर, पू॰ चम्पारण, कटिहार, खगडि़या, मधेपुरा, पूर्णियां, सहरसा, समस्तीपुर, सारण एवं वैशाली।
2 : राष्ट्रीय तेलहन एवं आॅयल पाम मिशन -
भारत सरकार द्वारा केन्द्र प्रायोजित नेशनल मिशन ऑन ऑयल सीड्स एवं ऑयलपाम (NMOOP) योजना अन्तर्गत मिनी मिशन-I (तेलहन) को बिहार में वित्तीय वर्ष 2014-2015 से लागू किया गया है।
तेलहन के उत्पादन एवं उत्पादकता में नियमित वृद्धि लाने हेतु तेलहनी फसलों में सरसों/राई, मूँगफली एवं सूर्यमुखी को सम्मिलित किया जाना, भूमि की उर्वरता को बरकरार रखते हुए तेलहन के क्षेत्र में राज्य को पूर्णतः आत्म निर्भर बनाना, कृषकों द्वारा परम्परागत बीज की जगह उन्नत एवं संकर प्रभेदों के बीज के उपयोग में वृद्धि लाना, कृषकों को अन्य उपादान उपलब्ध कराते हुए कृषि तकनीकी हस्तानान्तरण को सफल बनाना, कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना तथा कृषकों के बीच रोजगार के अवसर में वृद्धि लाना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है।
3 : राष्ट्रीय कृषि संधारणीय मिशन-
(क) वर्षाश्रित क्षेत्र विकास योजना (आर॰ए॰डी॰)-
इस योजना का मूल उद्देश्य कलस्टर आधारित दृष्टिकोण (100 हे॰), समेकित कृषि प्रणाली को अपनाकर फसलों की उत्पादकता बढ़ाना जैसे- फसल, बागवानी, गव्य, पशु संसाधन, मत्स्य,वानिकी इत्यादि तथा प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण तथा मूल्य संवर्द्धन है। इस योजना का मुख्य कार्यक्रम ग्रीन हाउस, मधुमक्खी पालन, साईलेज इकाई,कटाई उपरान्त भंडारण/प्रसंस्करण इकाई, तालाब/जलाशय का निर्माण (व्यक्तिगत/सामुदायिक), जलाशय का उद्धार, ट्यूब वेल, सिंचाई पाइप, सोलर पाइप, डीजल/विद्युत चालक पाइप, वर्मी कम्पोस्ट इकाई, हरी खाद इत्यादि है।
इस योजना का मूल उद्देश्य कलस्टर आधारित दृष्टिकोण (100 हे॰), समेकित कृषि प्रणाली को अपनाकर फसलों की उत्पादकता बढ़ाना जैसे- फसल, बागवानी, गव्य, पशु संसाधन, मत्स्य,वानिकी इत्यादि तथा प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण तथा मूल्य संवर्द्धन है। इस योजना का मुख्य कार्यक्रम ग्रीन हाउस, मधुमक्खी पालन, साईलेज इकाई,कटाई उपरान्त भंडारण/प्रसंस्करण इकाई, तालाब/जलाशय का निर्माण (व्यक्तिगत/सामुदायिक), जलाशय का उद्धार, ट्यूब वेल, सिंचाई पाइप, सोलर पाइप, डीजल/विद्युत चालक पाइप, वर्मी कम्पोस्ट इकाई, हरी खाद इत्यादि है।
(ख) मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड एवं प्रबन्धन योजना-
इस योजना के मुख्य उद्देश्य अगले तीन वर्षों में पूरे राज्य के खेतों की मिट्टी की जाँच कर किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना, कृषि छात्रों के क्षमता संवर्द्धन भागीदारी तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ प्रभावी सहयोग से मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करना, इस योजना अंतर्गत जिलों के मिट्टी की उर्वरता संबंधित समस्याओं का निदान हेतु समान रूप से मिट्टी नमूना लेने के लिए मानकीकृत प्रक्रियाओं के साथ विश्लेषण, विकसित एवं पोषक तत्वों के उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए जिलों में मिट्टी परीक्षण के आधार पर पोषक तत्व प्रबन्धन को बढ़ावा देना, पोषक तत्व के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए जिला एवं राज्य स्तर के मिट्टी जाँच से जुड़ेे कर्मियों तथा प्रगतिशील किसानों का क्षमता संवर्द्धन आदि है।
इस योजना के मुख्य उद्देश्य अगले तीन वर्षों में पूरे राज्य के खेतों की मिट्टी की जाँच कर किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना, कृषि छात्रों के क्षमता संवर्द्धन भागीदारी तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ प्रभावी सहयोग से मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करना, इस योजना अंतर्गत जिलों के मिट्टी की उर्वरता संबंधित समस्याओं का निदान हेतु समान रूप से मिट्टी नमूना लेने के लिए मानकीकृत प्रक्रियाओं के साथ विश्लेषण, विकसित एवं पोषक तत्वों के उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए जिलों में मिट्टी परीक्षण के आधार पर पोषक तत्व प्रबन्धन को बढ़ावा देना, पोषक तत्व के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए जिला एवं राज्य स्तर के मिट्टी जाँच से जुड़ेे कर्मियों तथा प्रगतिशील किसानों का क्षमता संवर्द्धन आदि है।
(ग) परम्परागत कृषि विकास योजना-
इस योजना के मुख्य उद्देश्य जैविक खेती के परम्परागत संसाधनों का उपयोग को प्रोत्साहित करना एवं जैविक उत्पादों को बाजार के साथ जोड़ना, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कलस्टर एवं पी॰जी॰एस॰ प्रमाणीकरण के द्वारा जैविक गाँव विकसित करना, इस योजना के तहत कलस्टर में 50एकड़ भूमि में जैविक खेती कराने के लिए 50 या अधिक किसानों को लेना, तीन वर्ष के लिए बीज से लेकर फसल की कटाई, ब्रांडिंग, पैकेजिंग तथा उत्पाद के विपणन तक प्रत्येक किसान को 20000 रू॰ प्रति एकड़ सहायता उपलब्ध कराना तथा किसानों के सहयोग से घरेलू उत्पादन एवं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में वृद्धि करना है।
इस योजना के मुख्य उद्देश्य जैविक खेती के परम्परागत संसाधनों का उपयोग को प्रोत्साहित करना एवं जैविक उत्पादों को बाजार के साथ जोड़ना, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कलस्टर एवं पी॰जी॰एस॰ प्रमाणीकरण के द्वारा जैविक गाँव विकसित करना, इस योजना के तहत कलस्टर में 50एकड़ भूमि में जैविक खेती कराने के लिए 50 या अधिक किसानों को लेना, तीन वर्ष के लिए बीज से लेकर फसल की कटाई, ब्रांडिंग, पैकेजिंग तथा उत्पाद के विपणन तक प्रत्येक किसान को 20000 रू॰ प्रति एकड़ सहायता उपलब्ध कराना तथा किसानों के सहयोग से घरेलू उत्पादन एवं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में वृद्धि करना है।
4 : प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना -
इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रक्षेत्रों में पानी की पहुँच को बढ़ाना तथा सुनिश्चित सिंचाई के तहत सिंचित क्षेत्रों को बढ़ाना (हर खेत को पानी), प्रक्षेत्रों में जल उपयोग क्षमता में सुधार लाना, सूक्ष्म सिंचाई एवं अन्य पानी की बचत प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण (More Crop per Drop), वाटरशेड दृष्टिकोण का उपयोग कर वर्षा आधारित क्षेत्रों के एकीकृत विकास को सुनिश्चित करना तथा किसानों और प्रसार कार्यकत्र्ताओं के लिए जल संचयन, जल प्रबन्धन और फसल पंक्तियोजना (aalignment) से संबंधित विस्तार गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
5 : राष्ट्रीय कृषि विकास योजना-
कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के अधिक समग्र एवं समेकित विकास को सुनिश्चित करने के लिए कृषि जलवायुवीय, प्राकृतिक संसाधन और प्रौद्योगिकी को ध्यान में रखते हुए गहन कृषि विकास करने के लिए राज्यों को बढ़ावा देने हेतु एक विशेष अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता (एसीए) योजना के लिए इस योजना की शुरूआत वर्ष 2007-08 से की गई। कृषि का सर्वांगीण विकास करना ही इस योजना का मुख्य उद्देश्य है। इसके तीन घटक- उत्पादन में वृद्धि, आधारभूत संरचना एवं परिसम्पत्ति का विकास तथा फलेक्सी फंड है। वर्ष 2007-08 से 2014-15 तक 100 प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में मिलता था, परन्तु वर्ष 2015-16 से यह फंडिंग पैटर्न बदलकर 60:40 केन्द्रांश एवं राज्यांश के अनुपात में किया गया है।
6 : सबमिशन आॅन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन-
इस योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि की उन्नत एवं नवीनतम तकनीकी की जानकारी प्रशिक्षण, फसलों का प्रत्यक्षण, किसानों तथा पदाधिकारियों का राज्य के बाहर परिभ्रमण, किसान पाठशाला का संचालन, किसान गोष्ठी/मेला/सम्मेलन/कर्मशाला/किसान वैज्ञानिक वार्तालाप कृषक हित समूह (FIG), खाद्य सुरक्षा समूह (FAG) तथा किसान उत्पादक संगठन (FPO), आदि के माध्यम से किसानों को सशक्त, आत्मनिर्भर एवं स्वाबलंबी बनाना तथा राज्य के अतिविशिष्ट एवं सर्वश्रेष्ठ किसानों द्वारा प्राप्त कृषि/कृषि से सम्बद्ध क्षेत्रों की उपलब्धियों को सफलता की कहानी/लघु फिल्म के माध्यम से अन्य किसानों के बीच प्रचारित करना है।
7 : नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान- एग्रीकल्चर-
इस योजना के मुख्य अवयव प्रखण्ड स्तर से मुख्यालय तक कम्प्यूटर एवं उपस्करों का क्रय, प्रमण्डलीय स्तर पर सूचना तकनीक प्रशिक्षण प्रयोगशाला की स्थापना, संविदा के आधार पर 3 वर्षों के लिए प्रखण्ड स्तर से मुख्यालय तक डाटा इन्ट्री ऑपरेटरों की नियुक्ति, मुख्यालय स्तर पर परियोजना प्रबन्धन इकाई हेतु वरीय परामर्शी एवं परामर्शी का चयन, प्रति दो प्रखण्ड पर टच स्क्रीन कियोस्क की स्थापना हेतु जिलावार प्रखण्डों का चयन, आत्मा योजना के माध्यम से Pest Surveillance के लिए हस्तचालित यंत्र का क्रय आदि है।
8 : सब मिशन आॅन एग्रीकल्चरल मैकेनाईजेशन योजना -
इस योजना अंतर्गत 10 लाख, 25 लाख एवं 40 लाख रूपये की लागत से कस्टम हायरिंग हेतु कृषि यंत्र बैंक तथा 80 लाख रूपये की लागत वाले हाईटेक हब की स्थापना किया जाना है। उक्त सभी कृषि यंत्र बैंक/हाईटेक हब पर,