उत्तर प्रदेश में कॉस से प्रभावित सर्वाधिक क्षेत्रफल बुन्देलखण्ड एवं तराई का भाग है। इन क्षेत्रों में इस खरपतवार से फसलों की वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पैदावार में भारी कमी हो जाती है। खरीफ की बुआई में भी कठिनाई होती है। चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर एवं अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण योजना के अन्तर्गत फसल शोध प्रक्षेत्र, वेलाताल महोबा पर किये गये परीक्षणों के आधार पर इस खरपतवार के नियंत्रण हेतु सफल तकनीकी का विकास किया गया है। इन प्रयोगों में ग्लाइफोसेट नामक रसायन बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। इस तकनीक की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है।
कॉस से रसायनिक नियंत्रण की तकनीक की हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें (Read complete information in Hindi for technology of Kos with chemical control)
उत्तर प्रदेश में
कॉस से प्रभावित सर्वाधिक क्षेत्रफल बुन्देलखण्ड एवं तराई का भाग है। इन क्षेत्रों में इस खरपतवार से
फसलों की वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पैदावार में भारी कमी हो जाती है। खरीफ की बुआई में भी कठिनाई होती है।
चन्द्रशेखर आजाद
कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर एवं अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार
नियंत्रण योजना के अन्तर्गत फसल शोध प्रक्षेत्र, वेलाताल महोबा पर किये गये परीक्षणों के
आधार पर इस खरपतवार के नियंत्रण हेतु सफल
तकनीकी का विकास किया गया है। इन प्रयोगों में ग्लाइफोसेट नामक रसायन बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। इस
तकनीक की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है।
(क) नियंत्रण तकनीक
- वर्षा ऋतु के प्रारम्भ अर्थात्
जुलाई में खेत की गहरी जुताई कर देते हैं। इसके बाद डिस्क प्लाऊ द्वारा जुताई करते हैं।
जिससे बड़े-बड़े ढेले टूट जाते हैं एवं कॉस के राइजोम (भूमिगत तने) ऊपर आ जाते है तथा कुछ
हद तक टुकड़ों में कट जाते है।
- इस प्रकार उखड़े हुए भूमिगत तनों को
निकाल कर इक्ट्ठा कर जला दिया जाता है जिससे उनका वानस्पतिक प्रसारण पुनः न हो सके।
- समय हो तो पाटा लगा देना चाहिए तथा
खेत को खाली छोड़ देना चाहिए।
- उपरोक्त क्रिया के 35-40 दिन के बाद जब कॉस के नये पौधे
तीव्र वृद्धि की अवस्था में (6-8 पत्तियां) अग्रसर हो तो ग्लाइफॉसेट 41 प्रतिशत एस.एल. की 3-4 ली०/हे० मात्रा 400-500 लीटर/हे० पानी में घोलकर फ्लैट पैन
नाजिल से पर्णीय छिड़काव मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक के खुले सूर्य के प्रकाश में करना
चाहिए। यदि कॉस की गहनता भयंकर हो तो रसायन की मात्रा बढ़ाकर उसे 4 ली० /हे० कर देनी चाहिए। इससे अच्छा
परिणाम मिलता है। इस रसायन के छिड़काव के बाद कॉस
की पत्तियों का रंग बदलने लगता है तथा 15-20 दिन में पौधे पूर्णतः सूख जाते है। यह रसायन कॉस के भूमिगत
तनों तक पहुंचकर उसे समूल रूप से नष्ट कर देता है तथा पुनः नया पौधा भूमि से नहीं
निकलता। किसी वजह से खेत के अन्दर कॉस के पौधे का जमाव हो जाये तो पुनः छिड़काव कर देना
चाहिए।
(ख) फसलों की बुआई
रसायन प्रयोग करने
के एक माह बाद फसलों की बुआई की जा सकती है।
(ग) सावधानियाँ
- रसायन का प्रयोग कॉस की तीव्र
वृद्धि की अवस्था 35-40 दिन पर करें।
- छिड़काव के बाद लगभग-6-8 घण्टे खुली धूप एवं पर्याप्त वायु
मण्डल की आर्द्रता आवश्यक है।
- छिड़काव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त
से मध्य सितम्बर है।
- छिड़काव के समय हवा तेज न हो।