बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती (Scientific farming of Basmati / Aromatic) Paddy in hindi ) आधुनिक सुंगंधित धान की खेती कैसे करें हिंदी म...
बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती (Scientific farming of Basmati / Aromatic) Paddy in hindi ) आधुनिक सुंगंधित धान की खेती कैसे करें हिंदी में पूरी जानकारी पढ़ें
वानस्पतिक नाम - Oryza Sativaकुल - Poaceae
गुणसूत्रों की संख्या - 24
उद्भव स्थल का नाम - वेविलोव
महत्त्व व उपयोगिता : धान विश्व की तीन महत्वपूर्ण खाद्यान फसलों में से एक है जोकि 2.7 बिलियन लोगों का मुख्य भोजन है। इसकी खेती विश्व में लगभग 150 मिलियन हेक्टेयर एवं एशिया में 135 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है। भारतवर्ष में लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश में करीब 5.9 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती विभिन्न परिस्थितियों: सिंचित, असिंचित, जल प्लावित, असिंचित ऊसरीली एवं बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। विभिन्न् परिस्थितियों अर्थात् अनुकूल सिंचित एवं विषम परिस्थितियों हेतु धान की उच्च उत्पादकता वाली संकर प्रजातियों के विकास पर बल दिये जाने की आवश्यकता है। सर्वप्रथम संकर प्रजातियों के विकास का कार्यक्रम चीन में वर्ष 1964 में आरम्भ हुआ। पिछले 20 वर्षों के अथक प्रयासों के उपरान्त विकसित संकर प्रजातियों से सामान्य प्रजातियों के सापेक्ष 15-2 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हो रहा है क्योंकि इनमें उपलब्ध संकर ओज एवं प्रभावी जड़तंत्र, सूखा, एवं मृदा लवणता के प्रति मध्यम स्तर का अवरोधी होता है। संकर प्रजातियों से कृषक कम क्षेत्रफल में सीमित संसाधनों से सफल विविधीकरण द्वारा अधिक उपज प्राप्त कर सकता है। भारतवर्ष में वर्तमान समय में लगभग 103 मिलियन हे० क्षेत्रफल संकर प्रजातियों द्वारा आच्छादित है। उत्तर प्रदेश मे खरीफ 2013-14 में कुल 13 लाख है क्षेत्रफल में संकर धान की खेती की जा रही है। प्रमुख संकर किस्मों का विवरण सारणी एक में दिया गया है।जिसमें उत्तर प्रदेश में खेती के लिए उपयुक्त संस्तुति प्रजातियों में नरेन्द्र संकर धान-2, पंत संकर धान-1, पंत संकर धान-2, प्रोएग्रो 6201, प्रोएग्रो 6444, पीएचबी 71 तथा पूसा आरएच 10 (सुगन्धित) गंगा, नरेन्द्र Åसर धान-3, सहयाद्री-4, एच०आर०आई०-157, डी०आर०आर०एच०-3 और यू०एस०-312 प्रमुख है।
सुगन्धित धान में
पोषण मूल्य : चावल में प्रोटीन 7.7,कार्बोहाइड्रेट 72.5,वसा-5.9,सेलूलोज
11.8 प्रतिशत पाया जाता है |
जलवायु व तापमान : धान का पौधा एक गर्म व नम जलवायु का पौधा है | इसके पौधे के
वृद्धि व विकास के लिए 21 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है |इसकी
फसल 50 से 500 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है
|
सुगन्धित धान की उन्नत किस्में : संकर किस्में दो विभिन्न आनुवांशिक गुणों वाली प्रजातियों के नर एवं मादा के संयोग/संसर्ग/संकरण से विकसित की जाती है इनमें पहली सीढ़ी का ही बीज नई किस्म के रूप में प्रयोग किया जाता है क्योंकि पहली सीढ़ी में एक विलक्षण ओज क्षमता पायी जाती है जो सर्वोत्तम सामान्य किस्मों की तुलना में अधिक उपज देने में सक्षम होती है ध्यान रहे कि अगली पीढ़ी में उनके संकलित गुण विघटित हो जाने के कारण ओज क्षमता में बहुत ह्त्रास होता है तथा पैदावार कम हो जाती है। परिणामतः संकर बीज किसानों को हर साल खरीदना पड़ता है।
सारणी-1: भारतवर्ष की प्रमुख संकर किस्में एवं उनके गुण
क्र०सं० संकर/विकसित वर्ष अवधि (दिन) औसत पैदावार टन/हे० राज्य हेतु विकसित
1 के०आर०एच०-2 (1996) 130-135 7.4 आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु,त्रिपुरा, उ०प्र०, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तरांचल एवं राजस्थान
2 पन्त संकर धान-1 (1997) 115-120 6.8 उत्तर प्रदेश
3 नरेन्द्र संकर धान-2 (1998) 125-130 6.15 उत्तर प्रदेश
4 पी०एच०बी०-71 (1997) 130-135 7.86 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु
5 प्रो एग्रो०-6201(2000) एराइज 125-130 6.18 पूर्वी राज्यों, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु, उ०प्र०
6 प्रो एग्रो-6444 (2001) एराइज 135-140 6.11 उ०प्र०,बिहार,त्रिपुरा, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक,
7 पी०ए०सी० 835, 837 120-130 6.5 पूर्वी उ०प्र०
8 पूसा आर०एच०-10(2001)+ 120-125 4.35 हरियाणा, पंजाब,दिल्ली, प० उ०प्र०
9 गंगा* 125-130 5.64 उत्तरांचल, हरियाणा, पंजाब, उ०प्र०
10 नरेन्द्र ऊसर संकर धान-3 (2004) 130-135 5.15 उत्तर प्रदेश के ऊसर क्षेत्रों हेतु
11 सहयाद्री-4 (2008) 113-118 5.7 महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब,उ०प्र०, पं० बंगाल
12 एच०आर०आई०-157 (2009) 130-135 6.51 उ०प्र०, म०प्र०,बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़,उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक , तमिलनाडु
13 डी०आर०आर०एच०-3 125-130 6.07 आन्ध्रप्रदेश,उड़ीसा, गुजरात,मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश
14 यू०एस०-312 125-130 6.07 तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पं० बंगाल
15 वी०एस०आर०-202 130-135 6.5 उ०प्र०, उत्तराखण्ड, पं० बंगाल,महाराष्ट्र, तमिनाडु
16 आर०एच०-1531 125-130 6.5 म०प्र०, उ०प्र०, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक
17 एराइज प्राइमा 126-130 6.5 पूर्वी उत्तर प्रदेश
सारणी-1 (अ): संकर प्रजातियों के रोग व कीट अवरोधी गुण
संकर अवरोधी मध्यम अवरोधी
के०आर०एच०-1 - ब्लास्ट
डी०आर०आर०एच०-1 ब्लास्ट -
के०आर०एच०-2 ब्लास्ट, शीथ राट -
सहयाद्री - बैक्ट्रीरियल लीफ ब्लाइट
नरेन्द्र संकर धान-2 ब्लास्ट बैक्ट्रीरियल लीफ ब्लाइट, शीथ राट
पी०एच०बी०-71 - बैक्ट्रीरियल लीफ ब्लाइट, ब्लास्ट
प्रोएग्रो-6201 एराइज ब्लास्ट ब्राउन प्लान्ट हॉपर
प्रोएग्रो-6201 एराइज ब्लास्ट बी०एल०बी०, सीथ राट
संकर अवरोधी मध्यम अवरोधी
पूसा आर०एच०-10 - बी०एल०बी०, ब्राउन प्लान्ट हॉपर
ब्लास्ट
आर०एच०-204 - बी०पी०एच०, डब्ल्यू०बी०पी०एच०
संकर धान की खेती सामान्य किस्मों की तरह ही की जाती है। परीक्षणों से सिद्ध हो चुका है कि संकर प्रजातियां सामान्य प्रजातियों की तुलना में 10-12 कुन्तल/हेक्टेयर अधिक उपज देती है क्योंकि इनमें प्रति पौध बालियों तथा प्रति बाली दानों की संख्या अधिक होने के साथ-साथ विषम परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।
भूमि का चयन ;
समुचित सस्य प्रबन्ध संकर धान की पूर्ण उत्पादन क्षमता उपयोग के लिए अत्यन्त आवश्यक है। संकर धान की अच्छी फसल लेने हेतु दोमट या मटियार भूमि उपयुक्त होती है। इनमें पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है।
बीज दर :
15-20 किग्रा० बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है जोकि सामान्य प्रजातियों की बीज दर का आधा है।
बीज का उपचार :
शुष्क बीजों को 24 घण्टे पानी में भिगोने के बाद कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यू०पी० से 2 ग्राम/किग्रा० बीज की दर से उपचारित कीजिए। उपचारित बीजों को पक्के फर्श पर छांव में फैलाकर गीला बोरा तथा पुआल से ढ़क देना चाहिए तथा दिन में 2-3 बार पानी छिड़ककर नमी बनाये रखना चाहिए।जिससे बीज का अंकुरण अच्छी तरह हो सके।
सुगन्धित धान की नर्सरी प्रबंधन तैयार करना :
संकर धान का नर्सरी प्रबन्धन अन्य अधिक उत्पादन देने वाली सामान्य प्रजातियों की तुलना से भिन्न होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में संकर धान रोपने हेतु 700 से 800 वर्गमीटर क्षेत्र की नर्सरी पर्याप्त होती है जोकि सामान्य धान के लिए भी वांछित है। ध्यान रहे कि संकर धान के बीज की मात्रा नर्सरी हेतु कम होने के बावजूद भी क्षेत्रफल घटाना उचित नहीं है। फलस्वरूप नर्सरी में पौधे बिरले रहते हैं तथा उनकी अच्छी वृद्धि होती है। नर्सरी की बुवाई से पूर्व 100 किग्रा० नत्रजन, 50 किग्रा० फास्फोरस एवं 50 किग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालते है। नर्सरी में यदि जस्ता या लोहे की कमी के लक्षण दिखाई पड़े तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट एवं 0.2 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करना वांछित है।
सुगन्धित धान किन रोपाई करना :
25-30दिन उम्र के 2-3 कल्लों वाले एक से दो पौधों की रोपाई 2-3 सेमी० गहराई पर पंक्ति से पंक्ति 15 सेमी० की दूरी पर करना उचित रहता है।जिससे कम से कम 45-50 पूँजी प्रतिवर्ग मीटर अवश्य रहे। रोपाई से एक सप्ताह के अन्दर मरे हुए पौधों के स्थान पर उसी संकर प्रजाति के पौधों की रोपाई अवश्य करना चाहिए।
खाव व उर्वरक प्रबन्धन
संकर धान की अच्छी पैदावार लेने के लिए 15 किग्रा० नत्रजन, 75 किग्रा० पोटाश एवं आवश्यकतानुसार 25 किग्रा० जस्ता प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय तथा शेष नत्रजन मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले निकलते समय तथा गोभ बनते समय देना चाहिए। जहां तक संभव हो उर्वरक की मात्रा भूमि का परीक्षण कराकर ही सुनिश्चित किया जाय तथा गोबर की 10-15 टन खाद या हरी खाद का प्रयोग किया जाय।
सुगन्धित धान की फसल पर सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण:
ध्यान रहे कि भूमि में नमी बराबर बनी रहे तथा दाना भरने की अवस्था में 5 सेमी० तक जल स्तर खेत में बनाये रखना लाभदायक होता है।रोपाई के एक सप्ताह के अन्दर ब्यूटाक्लोर 2.5 लीटर/हे० या एनीलोफास 1.25 लीटर/हे० की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें अथवा दो निकाई, रोपाई के 20 या 40 दिनों बाद करने से खरपतवार आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
सुगन्धित धान की फसल में सिंचाई व जल प्रबन्धन :
प्रदेश में सिंचन क्षमता के उपलब्ध होते हुए भी धान का
लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिचिंत है, जबकि धान की फसल को खाद्यान फसलों में सबसे अधिक पानी की
आवश्यकता होती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में
रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने, बाली निकलने फूल, खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी
बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए
अति संवेदनशील हैं। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है इसके लिए खेत की सतह
से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 सेमी० सिंचाई करना उपयुक्त होता है। यदि
वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई
दे तो सिंचाई अवश्य करें। खेत में पानी रहने से फास्फोरस, लोहा तथा मैंगनीज
तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि कल्ले निकलते
समय 5 सेमी० से अधिक पानी अधिक समय तक धान के खेत में भरा रहना भी हानिकारक
होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पानी भरा रहता हो वहॉ
जल निकासी का प्रबन्ध करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा उत्पादन पर कुप्रभाव पडेगा।
सिंचित दशा में खेत में निरन्तर पानी भरा
रहने की दशा में खेत से पानी अदृश्य होने की स्थिति में एक दिन बाद 5 से 7 सेमी० तक पानी भर दिया जाय इससे सिंचाई
के जल में भी बचत होगी।
सुगन्धित धान की फसल
पर लगने वाले कीट व रोकथाम (फसल सुरक्षा प्रबन्धन) :-
धान की फसल में
लगने वाले प्रमुख कीट व उनका नियंत्रण -
(क) असिंचित दशा में (ख) सिंचित दशा में
1
दीमक
1 दीमक
2
जड़ की सूड़ी
2 जड़ की सूड़ी
3
पत्ती लपेटक
3 नरई कीट
4
गन्धी बग
4 पत्ती लपेटक
5
सैनिक कीट
5 हिस्पा
6 बंका कीट
7 तना बेधक
8 हरा फुदका
9 भूरा फुदका
10 सफेद पीठ वाला फुदका
11 गन्धी बग
12 सैनिक कीट
दीमकः यह एक सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर
रहते हैं। यह कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व एक राजा होते हैं। श्रमिक पीलापन लिये हुए सफेद रंग के
पंखहीन होते है जो उग रहे बीज, पौधों की जड़ों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। दीमक बाहुल्य क्षेत्र में कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग
नहीं करना चाहिए। नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व
खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है। ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के
पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई
के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक
सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
जड़ की सूड़ीः इस कीट की गिडार उबले हुए चावल के समान सफेद रंग की होती है। सूड़ियॉ
जड़ के मध्य में रहकर हानि पहुँचाती है जिसके फलस्वरूप
पौधे पीले पड़ जाते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नरई कीट (गाल मिज): इस कीट की सूड़ी गोभ के अन्दर मुख्य तने
को प्रभावित कर प्याज के तने के आकार की रचना बना देती
है, जिसे सिल्वर शूट या ओनियन शूट कहते हैं। ऐसे ग्रसित पौधों में बाली
नहीं बनती है।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। नरई कीट के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे०
बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
पत्ती लपेटक कीटः इस कीट की सूड़ियॉ प्रारम्भ में पीले
रंग की तथा बाद में हरे रंग की हो जाती हैं, जो पत्तियों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर
से उसके हरे भाग को खुरच कर खाती हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण
हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन
को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
कारटाप
हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
हिस्पाः इस कीट के गिडार पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर फफोले जैसी आकृति बन
जाती है।प्रौढ़ कीट पत्तियों के हरे भाग को
खुरच कर खाते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
बंका कीटः इस कीट की सूड़ियॉ पत्तियों को अपने
शरीर के बराबर काटकर खोल बना लेती हैं तथा उसी के अन्दर रहकर दूसरे पत्तियों से चिपककर उसके हरे भाग को खुरचकर खाती हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। अच्छे जल निकास वाले खेत के दोनों
सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं। बंका कीट एवं
हिस्सा कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
कारटाप
हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
तना बेधकः इस कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अंडा देती है।अंडों से सूड़ियां निकलकर
तनों में घुसकर मुख्य सूट को क्षति पहुँचाती हैं, जिससे बढ़वार की स्थिति में मृतगोभ तथा
बालियां आने पर सफेद बाली दिखाई देती हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।तना बेधक कीट के पूर्वानुमान एवं
नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे० प्रयोग करना
चाहिए। तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण
हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन
को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
कारटाप
हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
हरा फुदकाः इस कीट के प्रौढ़ हरे रंग के होते हैं तथा इनके ऊपरी पंखों के
दोनों किनारों पर काले बिन्दु पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं, जिससे प्रसित पत्तियां पहले पीली व बाद
में कत्थई रंग की होकर नोक से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु
शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों के
अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के
नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
भूरा फुदकाः इस कीट के प्रौढ भूरे रंग के पंखयुक्त तथा शिशु पंखहीन भूरे रंग के
होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं
किल्लों के मध्य रस चूस कर छति पहॅुचाते हैं, जिससे प्रकोप के प्रारम्भ में गोलाई में
पौधे काले होकर सूखने लगते हैं, जिसे ‘हापर बर्न’ भी कहते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। भूरा फुदका एवं सैनिक कीट बाहुल्य
क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई
करना चाहिए। भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर
सफेद पीठ वाला फुदकाः इस कीट के प्रौढ़ कालापन लिये हुए भूरे
रंग के तथा पीले शरीर वाले होते हैं। इनके पंखों के जोड़कर सफेद पट्टी होती है। शिशु सफेद रंग के पंखहीन होते हैं तथा इनके उदर पर सफेद
एवं काले धब्बे पाये जाते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनो ही पत्तियों एवं किल्लों के मध्य रस चूसते हैं, जिससे पौधे पीले पड़कर सूख जाते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।सफेद पीठ वाला फुदका के नियंत्रण
हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
गन्धी बगः इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ लम्बी टांगो वाले भूरे रंग के विशेष गन्ध
वाले होते हैं, जो बालियों की दुग्धावस्था में दानों में
बन रहे दूध को चूसकर क्षति पहूँचाते हैं। प्रभावित दानों में चावल नहीं बनते हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। गन्धी बग एवं सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन
में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
गन्धी बग के
नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।
सैनिक कीटः इस कीट की सूड़ियाँ भूरे रंग की होती
हैं, जो दिन के समय किल्लों के मध्य अथवा भूमि की दरारों में छिपी रहती
हैं। सूड़ियाँ शाम को किल्लों अथवा दरारों से निकलकर पौधों पर चढ़ जाती हैं तथा बालियों को छोटे–छोटे टुकड़ों में काटकर नीचे गिरा देती हैं।
बचाव व रोकथाम - खेत एवं मेंड़ों को घासमुक्त एवं मेड़ों
की छटाई करना चाहिए। समय से रोपाई करना चाहिए। फसल की साप्ताहिक निगरानी करना
चाहिए। कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण
हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू केज-कम-परचर में डालना चाहिए। फसलों
के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना
चाहिए। जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु
निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव करना चाहिए।
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
धान के पौधों में
कीटों के प्रकोप का आर्थिक क्षति स्तर :
क्र०सं० कीट का नाम फसल की अवस्था आर्थिक क्षति स्तर
1
जड़ की सूड़ी
वानस्पतिक अवस्था 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे
2
नरई कीट
वानस्पतिक अवस्था 5 प्रतिशत सिल्वर सूट
3
पत्ती लपेटक
वानस्पतिक अवस्था 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज
4
हिस्पा
वानस्पतिक अवस्था 2 प्रकोपित पत्ती या 2 प्रौढ़ प्रति पुंज
5
बंका कीट
वानस्पतिक अवस्था 2 ताजी प्रकोपित पत्ती प्रति पुंज
6
तना बेधक
बाली अवस्था 5 प्रतिशत मृत गोभ प्रति वर्ग मी०
7
हरा फुदका
वानस्पतिक एवं
बाली अवस्था
1-2 कीट प्रति वर्ग
मी० अथवा 10-20 कीट प्रति पुंज
8
भूरा फुदका
वानस्पतिक एवं
बाली अवस्था
15-20 कीट प्रति पुंज
9
सफेद पीठ वाला फुदका
वानस्पतिक एवं
बाली अवस्था
15-20 कीट प्रति पुंज
10
गन्ध बग
बाली की
दुग्धावस्था
1-2 कीट प्रति पुंज
11
सैनिक कीट
बाली की परिपक्वता
की अवस्था
4-5 सूड़ी प्रति वर्ग
मी०
धान की फसल में लगने वाले कीटों नियंत्रण के उपाय :
खेत एवं मेंड़ों
को घासमुक्त एवं मेड़ों की छटाई करना
समय से रोपाई करना चाहिए।
फसल की साप्ताहिक
निगरानी करना चाहिए।
कीटों के
प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु शत्रु कीटों के अण्डों को इकट्ठा कर बम्बू
केज-कम-परचर में डालना चाहिए।
दीमक बाहुल्य क्षेत्र में
कच्चे गोबर एवं हरी खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
फसलों के अवशेषों
को नष्ट कर देना चाहिए।
उर्वरकों की
संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए।
जल निकास की
समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
भूरा फुदका एवं
सैनिक कीट बाहुल्य क्षेत्रों में 20 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़कर रोपाई करना चाहिए।
अच्छे जल निकास
वाले खेत के दोनों सिरों पर रस्सी पकड़ कर पौधों के ऊपर से तेजी से गुजारने से बंका कीट की सूड़ियॉ पानी में गिर जाती
हैं, जो खेत से पानी निकालने पर पानी के साथ बह जाती हैं।
तना बेधक कीट के
पूर्वानुमान एवं नियंत्रण हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप
प्रति हे० प्रयोग करना चाहिए।
नीम की खली 10 कु०प्रति हे० की दर से बुवाई से पूर्व
खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में धीरे-धीरे कमी आती है।
ब्यूवेरिया
बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की
2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर हल्के
पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई
के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक
सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
यदि कीट का प्रकोप
आर्थिक क्षति स्तर पार कर गया हो तो निम्नलिखित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
दीमक एवं जड़ की
सूड़ी के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 ली०प्रति हे० की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना
चाहिए। जड़ की सूड़ी के नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी 10 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में बुरकाव भी किया जा सकता है।
नरई कीट के
नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन
को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० प्रति हे० 3-5 सेमी० स्थिर पानी में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
हरा, भूरा एवं सफेद पीठ वाला फुदका के
नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
एसिटामिप्रिट 20 प्रतिशत एस०पी० 50-60 ग्राम/हे० 500-600 ली० पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
फिप्रोनिल 0.3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस०एल० 125 मि०ली०।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 750 मि०ली०।
फास्फामिडान 40 प्रतिशत एस०एल० 875 मि०ली०।
थायामेथोक्सैम 25 प्रतिशत डब्ल्यू०जी० 100 ग्राम।
डाईक्लोरोवास 76 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली०।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर।
तना बेधक, पत्ती लपेटक, बंका कीट एवं हिस्सा कीट के नियंत्रण
हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन
को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०/हे० 500 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
कारटाप
हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 18 कि०ग्रा० 3-5 सेमी० स्थिर पानी
में।
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई०सी० 1.50 लीटर।
ट्राएजोफास 40 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर।
मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस०एल० 1.25 लीटर।
गन्धी बग एवं
सैनिक कीट के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे०
बुरकाव करना चाहिए।
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
फेनवैलरेट 0.04 प्रतिशत धूल 20-25 कि०ग्रा०।
गन्धी बग के
नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० की 2.50 लीटर मात्रा प्रति हे० 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना लाभप्रद होता है।
धान की फसल पर
चूहों का आतंक व उनका नियंत्रण :
धान की फसल चूहों द्वारा भी प्रभावित होती है, जिनमें खेत का चूहा (फिल्ड रैट), मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) एवं
खेत का चूहा (फील्ड माउस) आदि मुख्य चूहे की
हानिकारक प्रजातियॉ हैं।
चूहों के नियंत्रण
के उपायः
1- इनके नियंत्रण हेतु खेतों की निगरानी एवं
जिंकफास्फाइड 80 प्रतिशत का प्रयोग करना चाहिए तथा नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम
निम्न प्रकार सामूहिक रूप से किया जाय तो अधिक सफलता
मिलती है।
पहला दिन खेत की निगरानी करें तथा जितने चूहे के
बिल हो उसे बन्द करते हुए पहचान हेतु लकड़ी के डन्डे गाड़ दें।
दूसरा दिन- खेत में जाकर बिल की निगरानी करें जो बिल बन्द हो वहॉ से
गड़े हुए डन्डे हटा दें। जहॉ पर बिल खुल गये
हों वहॉ पर डन्डे गड़े रहने दें। खुले बिल में एक ग्राम सरसों का तेल एवं 48 ग्राम भुने हुए दाने में जहर मिला कर रखें।
तीसरा दिन बिल की पुनःनिगरानी करें तथा जहर मिला
हुआ चारा पुनःबिल में रखें।
चौथा दिन जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 1.0 ग्राम मात्रा को 1.0 ग्राम सरसों के तेल एवं 48 ग्राम भुने हुए दाने में बनाये गये
जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिए।
पॉचवा दिन बिल की निगरानी करें तथा मरे हुए चूहे को
जमीन में खोद कर दबा दें।
छठा दिन बिल को पुनः बन्द कर दें तथा अगले दिन
यदि बिल खुल जाये तो इस साप्ताहिक कार्यक्रम को पुनः अपनायें।
2- ब्रोमडियोलोन 0.005 प्रतिशत के बने बनाये चोर की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिंदा बिल में रखना चाहिए। इस दवा को
चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है।
धान की फसल में एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन
(अ) शस्य क्रियायेः
गर्मी की मिट्टी
पलट हल से गहरी जुताई करने से भूमि में कीटों की विभिन्न अवस्थायें जैसे- अण्डा, सूड़ी, शंखी एवं प्रौढ़
अवस्थायें नष्ट हो जाती हैं तथा चिडिया भी कीटों को चुगकर खा जाती हैं। इसके अतिरिक्त भूमि जनित रोगों यथा-उकठा, जड़ सड़न, डैम्पिंग आफ, कालर राट, आदि भी सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार खरपतवारों के बीज भी मिट्टी
में नीचे दब जाते हैं, जिससे खरपतवारों को जमाव बहुत ही कम हो जाता है।
·
स्वस्थ एवं रोगरोधी प्रजातियों की बुवाई/रोपाई करना चाहिए।
·
बीज शोधन कर समय से बुवाई/रोपाई के साथ-साथ फसल चक्र अपनाना
चाहिए।
·
नर्सरी समय से उठी हुई क्यारियों पर लगाना चाहिए।
·
पौधों से पौधों और लाइन से लाइन के बीच वॉछित दूरी रखना
चाहिए।
·
उर्वरकों की संस्तुत मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
·
खेत के मेड़ों को घासमुक्त एवं साफ सुथरा रखना चाहिए।
·
जल निकास का समुचित प्रबंध करना चाहिए।
·
कटाई जमीन की सतह से करना चाहिए।
·
फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
(ब) यॉत्रिक नियंत्रणः
·
धान के पौधे की चोटी काटकर रोपाई करना चाहिए।
·
खेतों से अण्डों व सड़ियों को यथा सम्भव एकत्र करके नष्ट कर
देना चाहिए।
·
कीट एवं रोग ग्रसित पौधों की पत्तियॉ अथवा आवश्यकतानुसार
पूरा पौधा उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
·
खरपतवारों को निराई-गुड़ाई द्वारा खेत से निकाल देना चाहिए।
·
हिस्पा ग्रसित पौधों की पत्तियों का उपरी हिस्सा काट देना
चाहिए।
·
केसवर्म की सूड़ियों को रस्सी द्वारा पानी में गिरा देना
चाहिए।
·
खेतों में प्रकाश-प्रपंच का प्रयोग कर हानिकारक कीटों को
नष्ट कर देना चाहिए।
·
तना बेधक कीट के आंकलन एवं नियंत्रण हेतु फेरोमोन प्रपंच का
प्रयोग करना चाहिए।
·
खेत में यथा सम्भव वर्ड पर्चर का प्रयोग करना चाहिए।
·
पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण हेतु बेर की झाडियों से फसल के
उपरी भाग पर घुमा देने से पत्तियॉ खुल जाती हैं,जिससे सूड़ियॉ नीचे गिर जाती है।
(स) जैविक नियंत्रणः
·
खेत में मौजूद परभक्षी यथा मकड़ियॉ, वाटर वग, मिरिड वग, ड्रेगन फ्लाई,मिडो ग्रासहा पर आदि एवं परजीवी यथा ट्राइकोग्रामा (बायो एजेण्ट्स) कीटों का संरक्षण करना चाहिए।
·
परजीवी कीटों को प्रयोगशाला में सवंर्धित कर खेतों में
छोड़ना चाहिए।
·
शत्रु एवं मित्र (2:1) कीटों का अनुपात बनाये रखना चाहिए।
·
आवश्यकतानुसार बायोपेस्टीसाइड्स का प्रयोग करना चाहिए।
(द) रासायनिक नियंत्रणः
·
कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु कीटनाशी रसायनों का प्रयोग अंतिम
उपाय के रूप में करना चाहिए।
·
सुरक्षित एवं संस्तुत रसायनों को उचित समय पर निर्धारित
मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
·
रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानियॉ अवश्य बरतनी चाहिए।
·
खरपतवार नाशकों का प्रयोग दिशा-निर्देशों के अनुसार ही करना
चाहिए।
धान की फसल पर लगने वाले प्रमुख रोग :
क्र०सं० रोग क्र०सं० रोग
1
1. सफेदा रोग
5 भूरा धब्बा
2
2. खैरा रोग
6 जीवाणु झुलसा
3
3. शीथ ब्लाइट
7 जीवाणु धारी
4
4. झोंका रोग
8 मिथ्य कण्डुआ
सफेदा रोगः यह रोग लौह तत्व की कमी के कारण नर्सरी
में अधिक लगता है। नई पत्ती कागज के समान सफेद रंग की निकलती है।
बचाव व रोकथाम - सफेदा रोगः के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए
चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
खैरा रोगः यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस
रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन
जाते हैं।
बचाव व रोकथाम - खैरा रोगः के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 20-25 किग्रा० प्रति हे० की दर से बुवाई/रोपाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला
देने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है।
जीवाणु झुलसा/जीवाणुधारी
रोगः के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड
(जैव कवक नाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.50 किग्रा० प्रति हे० की दर से 10-20 किग्रा० बारीक बालू में मिलाकर बुवाई/रोपाई से पूर्व उर्वरकों की तरह से बुरकाव
करना लाभप्रद होता है। उक्त बायो पेस्टीसाइड्स की 2.50 किग्रा० मात्रा को प्रति हे० 100 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाया जा सकता है।
शीथ ब्लाइटः इस रोग में पत्र कंचुल (शीथ) पर अनियमित
आकार के धब्बे बनते हैं, जिसका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग
हल्के रंग का होता है।
बचाव व रोकथाम - शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण हेतु
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। शीथ ब्लाइटः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित
रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
ट्राइकोडर्मा
विरडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5-10 ग्राम प्रति ली० पानी (2.5 कि०ग्रा०) 500 ली० पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव।
1
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2
थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
3
हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
4
प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत र्इ०सी० 500 मिली०
5
कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
झोंका रोगः इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के
धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते
हैं। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डण्ठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं।
बचाव व रोकथाम - झोंका रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। झोंका रोग के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को
प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
1
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2
एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
3
हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
4
मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
5
जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
6
कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
7
आइसोप्रोथपलीन 40 प्रतिशत र्इ०सी० 750 मिली प्रति हे०
8
कासूगामाइसिन 3 प्रतिशत एम०एल० 1.15 ली० प्रति हे०
भूरा धब्बाः इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अण्डाकार धब्बे बन जाते हैं।
इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिये हुए कत्थई रंग का होता है।
बचाव व रोकथाम - भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये | भूरा धब्बा के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन
में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
1
एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
2
मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
3
जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
4
जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
5
थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
जीवाणु झुलसाः इस रोग में पत्तियाँ नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं
टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।
बचाव व रोकथाम - जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारीः के नियंत्रण हेतु
15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० के साथ मिलाकर प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
जीवाणु धारीः इस रोग में पत्तियों पर नसों के बीच
कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियॉ बन जाती हैं |
बचाव व रोकथाम - जीवाणु धारी रोग के नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।
मिथ्या कण्डुआः इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले
रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले
हो जाते हैं।
बचाव व रोकथाम - मिथ्य कण्डुआ रोग के नियंत्रण हेतु
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए। मिथ्य कण्डुआ के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में
से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में
घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
1.
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2.
कापर हाइड्राक्साइड 77 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
धान की फसल पर
लगने वाले रोगों के नियंत्रण के उपाय :
1. बीज उपचार
बीज उपचारः जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारी रोग के
नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति 25 किग्रा० बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिये।
झोंका रोग के
नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।
शीथ ब्लाइट रोग के
नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०
की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।
भूरा धब्बा रोग के
नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० की 2.50 ग्राम मात्रा अथवा ट्राइकोडरमा की 4.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।
मिथ्य कण्डुआ रोग के
नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी०
की 2.0 ग्राम मात्रा को प्रति किग्रा० बीज की दर
से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए।
2. भूमि उपचार
खैरा रोगः के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 20-25 किग्रा० प्रति हे० की दर से बुवाई/रोपाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला
देने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है।
जीवाणु
झुलसा/जीवाणुधारी रोगः के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.50 किग्रा० प्रति हे० की दर से 10-20 किग्रा० बारीक बालू में मिलाकर बुवाई/रोपाई से पूर्व उर्वरकों की तरह से बुरकाव करना लाभप्रद होता है। उक्त बायो पेस्टीसाइड्स की 2.50 किग्रा० मात्रा को प्रति हे० 100 किग्रा० गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन रखने के उपरान्त बुवाई से पूर्व भूमि में मिलाया जा सकता है।
भूमि जनित रोगों:
के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी)
ट्रीइकोडरमा बिरडी 1 प्रतिशत अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत की 2.5 किग्रा० प्रति हे० 60-75 किग्रा० सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर
भूमि में मिला देने से शीथ ब्लाइट, मिथ कण्डुआ आदि रोगों के प्रबन्धन में
सहायक होता है।
3.पर्णीय उपचार
सफेदा रोगः के
नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० फेरस सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए
चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
खैरा रोगः के
नियंत्रण हेतु 5 किग्रा० जिंक सल्फेट को 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.50 किग्रा० बुझे हुए चूने को प्रति हे० लगभग 1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
शीथ ब्लाइटः के
नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
ट्राइकोडर्मा
विरडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5-10 ग्राम प्रति ली० पानी (2.5 कि०ग्रा०) 500 ली० पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव।
1
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2
थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
3
हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
4
प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत र्इ०सी० 500 मिली०
5
कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
झोंका रोगः के
नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
1
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2
एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
3
हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली०
4
मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
5
जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
6
कार्बेण्डाजिम 12 प्रतिशत+मैंकोजेब 63 प्रतिशत डब्लू०पी० 750 ग्राम
7
आइसोप्रोथपलीन 40 प्रतिशत र्इ०सी० 750 मिली प्रति हे०
8
कासूगामाइसिन 3 प्रतिशत एम०एल० 1.15 ली० प्रति हे०
भूरा धब्बाः के
नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
1
एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली०
2
मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
3
जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
4
जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
5
थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० 1.0 किग्रा०
जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारीः के नियंत्रण हेतु 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत+टेट्रासाक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू०पी० के साथ मिलाकर प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
मिथ्य कण्डुआः के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायन में
से किसी एक रसायन को प्रति हे० 500-750 लीटर पानी में
घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
1.
कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० 500 ग्राम
2.
कापर हाइड्राक्साइड 77 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
धन की फसल पर लगने
वाले प्रमुख खरपतवार व नियंत्रण -
(क) जल भराव की दशा में: होरा घास, बुलरस, छतरीदार मोथा, गन्ध वाला मोथा, पानी की बरसीम आदि।
(ख) सिंचित दशा में:
1. सकरी पत्ती- सांवा, सांवकी, बूटी, मकरा, कांजी, बिलुआ कंजा आदि।
2. चौड़ी पत्ती- मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, बोन झलोकिया, बमभोली, घारिला, दादमारी, साथिया, कुसल आदि।
खरपतवार नियंत्रण
के उपाय
शस्य क्रियाओं द्वाराः शस्य क्रियाओं द्वारा खरपतवार नियंत्रण
हेतु गर्मी में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई, फसल चक्र अपनाना, हरी खाद का प्रयोग, पडलिंग आदि करना चाहिए।
यॉत्रिक विधिः इसके अन्तर्गत खुरपी आदि से निराई-गुडाई
कर भी खरपतवार नियंत्रित किया जा सकता है।
रासायनिक विधिः इसके अन्तर्गत विभिन्न खरपतवारनाशी
रसायनों को फसल की बुवाई/रोपाई के पश्चात संस्तुत मात्रा में प्रयोग किया जाता है, जो तुलनात्मक दृष्टि से अल्पव्ययी होने के कारण अधिक लाभकारी व ग्राह्य
है।
1. नर्सरी में
खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई०सी० 500 मिली० प्रति एकड़ की दर से 5-7 किग्रा० बालू में मिला कर पर्याप्त नमी की स्थिति में नर्सरी डालने के 2-3 दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिए।
2. सीधी बुवाई की
स्थिति में प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई०सी० 1.25 लीटर बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर अथवा
बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एस०सी० 0.20 लीटर बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रति हे० की दर से नमी की
स्थिति में लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से
छिड़काव करना चाहिए।
3. रोपाई की स्थिति
में- सकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन
की संस्तुत मात्रा को प्रति हे० लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से 2 इंच भरे पानी में रोपार्इ के 3-5 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।
1. ब्यूटाक्लोर 50 प्रतिशत ई०सी० 3-4 लीटर
2. एनीलोफास 30 प्रतिशत ई०सी० 1.25-1.50 लीटर
3. प्रेटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ई०सी० 1.60 लीटर
4. पाइराजोसल्फ्यूरान इथाईल 10 प्रतिशत डब्लू०पी० 0.15 किग्रा०
5. बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एस०सी० 0.20 लीटर रोपाई के 15-20 दिन बाद नमी की स्थिति में
4. चौड़ी पत्ती वाले
खरपतवारों के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को प्रति हे० लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से बुवाई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए-
1. मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी० 20 ग्राम
2. इथाक्सी सल्फ्यूरान 15 प्रतिशत डब्लू०डी०जी० 100 ग्राम
3. 2,4-डी इथाइल ईस्टर 38 प्रतिशत ई०सी० 2.5 लीटर
धान की फसल में माहवार महत्वपूर्ण कार्य
बिन्दु
मई
पंत-4, सरजू-52, आईआर-36, नरेन्द्र 359 आदि की नर्सरी डालें।
धान के बीज शोधन
हेतु 4 ग्राम स्ट्रेप्टो साइक्लीन रसायन को 45 ली० पानी में घोलकर 25 किग्रा० बीज को 12 घन्टे पानी में भिगोकर तथा सुखाकर नर्सरी में बोना।
जून
·
धान की नर्सरी डालना। सुगन्धित प्रजातियां शीघ्र पकने वाली।
·
नर्सरी में खैरा रोग लगने पर जिंक सल्फेट तथा यूरिया का
छिड़काव सफेदा रोग हेतु फेरस सल्फेट तथा यूरिया का छिड़काव।
·
धान की रोपाई।
·
रोपाई के समय संस्तुत उर्वरक का प्रयोग एवं रोपाई के एक
सप्ताह के अंदर ब्यूटाक्लोर से खरपतवार नियंत्रण।
जुलाई
·
धान की रोपाई प्रत्येक वर्गमीटर में 50 हिल तथा प्रत्येक हिल पर 2-3 पौधे लगाना एवं ब्यूटाक्लोर से खरपतवार
नियंत्रण।
·
ऊसर क्षेत्र हेतु ऊसर धान-1, ऊसर धान-2, जया एवं साकेत-4 की रोपाई 35-40 दिन की पौध लगाना। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सेमी० व पौध से पौध की दूरी 10 सेमी० एवं एक स्थान पर 4-5 पौध लगाना।
अगस्त
·
धान में खैरा रोग नियंत्रण हेतु 5 किग्रा०जिंक सल्फेट तथा 20 किग्रा० यूरिया अथवा 2.5 किग्रा० बुझा चूना को 800 लीटर पानी।
·
धान में फुदका की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफास 30 ई०सी० (750 मी०ली०) 500-600 लीटर पानी में
घोलकर प्रति हे० छिड़काव।
सितम्बर
·
धान में फूल खिलने पर सिंचाई।
·
धान में दुग्धावस्था में सिंचाई।
·
धान में भूरा धब्बा एवं झौका रोग की रोकथाम हेतु जिंक
मैंगनीज कार्बामेट अथवा जीरम 80 के 2 कि०ग्रा अथवा जीरम 27 प्रतिशत के 3 ली० अथवा कार्बेडान्जिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर
तैयार कर छिड़काव करना चाहिए।
·
धान में पत्तियों एवं पौधों के फुदकों के नियंत्रण हेतु
मोनोक्रोटोफास 1 लीटर का 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे० छिड़काव।
·
धान में फ्लेग लीफ अवस्था पर नत्रजन की टाप ड्रेसिंग।
·
गन्धी कीट नियंत्रण हेतु 5 प्रतिशत मैलाथियान चूर्ण के 25 से 30किग्रा० प्रति हे० का बुरकाव करें।
अक्टूबर
·
धान में सैनिक कीट नियंत्रण हेतु मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण अथवा फेन्थोएट का 2 प्रतिशत चूर्ण 25-30 किग्रा० प्रति हे० बुरकाव करें।
·
धान में दुग्धावस्था में सिंचाई।
·
धान में भूरा धब्बा एवं झौका रोग की रोकथाम हेतु जिंक
मैंगनीज कार्बामेट अथवा जीरम 80 के 2 कि०ग्रा अथवा जीरम 27 प्रतिशत के 3 ली० अथवा कार्बेडान्जिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर
तैयार कर छिड़काव करना चाहिए।
·
धान में पत्तियों एवं पौधों के फुदकों के नियंत्रण हेतु
मोनोक्रोटोफास 1 लीटर का 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे० छिड़काव।
·
धान में फ्लेग लीफ अवस्था पर नत्रजन की टाप ड्रेसिंग।
·
गन्धी कीट नियंत्रण हेतु 5 प्रतिशत मैलाथियान चूर्ण के 25 से 30किग्रा० प्रति हे० का बुरकाव करें।
सुगन्धित धान की कटाई :
धान के पौधें में
बालियाँ निकलने के करीब 30-40 दिन बाद बालियाँ पूरी तरह पक जाती हैं | धान के दानों को मुंह
में रखकर काटने से कट की आवाज आती है तो समझ लेना चाहिए कि धान की फसल कटाई योग्य
हो गयी है | धान
के दानों में जब 20 प्रतिशत नमी रह जाए तब धान की कटाई करनी चाहिए | धान की छोटे
क्षेत्रों में हसिया,दराती से तथा बड़े उत्पादक क्षेत्रों में कम्बाइन मशीन से कटाई
करानी लेनी चाहिए |50 प्रतिशत बालियां निकलने के बीस दिन बाद
या बाली के निचले दानों में दूध बन जाने पर खेत से पानी बाहर निकाल देना
चाहिए जब 80-85 प्रतिशत
दाने सुनहरे रंग
के हो जाये अथवा बाली के निकलने के 30-35 दिन बाद कटाई करना चाहिए। इससे दाने को झड़ने से बचाया जा सकता
है। अवांछित पौधों को कटाई के पहले ही खेत से निकाल देना चाहिए।
सुगन्धित धान की मड़ाई व गहाई : धान की फसल सूख जाने पर परम्परागत अथवा किसी भी
शक्तिचालित गहाई यंत्र से धान की गहाई करना चाहिए | कम्बाइन मशीन से फसल की कटाई
करने पर कटाई के समय ही गहाई साथ में हो जाती है किन्तु इससे जानवरों के लिए पुवाल
नही मिल पाता |
सुगन्धित धान से प्राप्त उपज : 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टयेर
संकर धान के बीज
उत्पादन हेतु उपयुक्त पैकेजसंकर बीज उत्पादन हेतु निम्नलिखित शस्य क्रियाएं अच्छे एवं स्वस्थ्य बीज उत्पादन हेतु आवश्यक है जिनका प्रयोग करने से 2 से 2.5 टन/हे० संकर बीज आसानी से पैदा किया जा सकता है।
क्रियाएं प्रयोग विधि
बीज दर ‘ए’ लाइन या मादा जातिः 15 किग्रा०/हे० ‘बी’ अथवा ‘आर लाइन’ या नर जातिः 5 किग्रा०/हे०
नर्सरी बिरल नर्सरी 20 ग्राम/वर्ग मीटर बीज पर्याप्त
पंक्ति अनुपात 2 बीः 8 ए नर पौधों के उत्पादन हेतु 2 आरः 10 ए संकर बीज उत्पादन हेतु
पौध संख्या/हिल 1 या 2 पौधे/हिल मादा पौधे 2 से 3 पौधे/हिल नर पौधे
दूरी नरः नर = 30 सेमी०
नरः मादा = 20 सेमी०
मादाः मादा = 15 सेमी०
पौधः पौध = 15 सेमी० या 10 सेमी०
जी०ए०-3 (जिबेरेलिक एसिड) 60 से 90ग्रा०/हे० 500 लीटर पानी में 5-10 फीसदी बाली
प्रयोग निकल आने पर दो बार में प्रयोग करें।
पूरक सेचन क्रियाएं पराग कणों के निकलने के समय 4 से 5 बार 30 मिनट के अंतराल पर फूल अवधि पर
(सप्लीमेंट्री पॉलीनेशन)
अवांछित पौधों को निकालना विजिटेटिव अवस्था- मार्फोलॉजिक गुणों के आधार पर पत्तियों एवं पौधों के आकार को ध्यान में रखते हुए पुष्पावस्था- बालियों के गुणों को ध्यान में रखते हुए। परिपक्तवा अवस्था- दानों के गुणों एवं प्रति बाली बीज के बनने को आधार मानकर।
संकर बीज 2.0 से 2.5 टन/हे०
अच्छे प्रबन्धन एवं उपयुक्त प्रजातियों के प्रयोग से रू० 3000/-से रू० 5500/- प्रति हे० का फायदा संकर प्रजाति के उगाने से हो सकता है। तथा किसान भाई संकर बीज का उत्पादन कर रू० 30000 से रू० 50000 हेक्टेयर लाभ कमा सकता है तथा बीज उत्पादन हेतु कार्यक्रम में 60 से 80 आदमियों को रोजगार विशेष रूप से महिला किसानों को मिल जाता है।
बीज की शुद्धता का मूल्यांकन
शुद्ध बीज की पहचान हेतु पारम्पारिक ‘ग्रो आउट टेस्ट’ की जगह पर मालीकुलर विधि से कम समय में एवं सस्ते दरों पर शुद्ध बीज की पहचान की जा सकती है। एक दिन में एक हजार नमूने आसानी से किया जा सकता है तथा प्रति नमूने मात्र रू० 6 खर्च करने पड़ते हैं जबकि पारम्परिक विधि से न केवल अधिक समय लगता है बल्कि खर्चीला भी है।
सावधानियां/मुख्य बिन्दु
संकर धान की किस्मों की आनुवांशिक क्षमता का भरपूर लाभ लेने हेतु इसका बीज हर साल नया प्रयोग करना चाहिए क्योंकि संकर धान की फसल से प्राप्त बीज दूसरे वर्ष अपेक्षाकृत कम पैदावार देते है तथा दूसरे वर्ष की फसल में ऊंचाई, परिपक्वता एवं दानों में विभिन्नता आ जाती है जबकि संकर धान की पहली फसल में पर्याप्त समरूपता रहती है।
चूंकि संकर धान की उत्तम खेती हेतु मात्र 15-18 किग्रा० बीज/हे० प्रयोग किया जाता है। अतः नर्सरी प्रबन्धन नितान्त आवश्यक है।
संकर धान की खेती से लाभ
सफल संकर धान की खेती करने पर लगभग रू० 2500-3000 का लाभ सामान्य प्रजातियों की तुलना में होता है।